- बैठक-बैठक में उलझ गया लोकायुक्त
- भाजपा के साथ सुर-ताल मिला रही कांग्रेस
2017 का विधानसभा चुनाव याद है किसी को। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि 100 दिन में लोकायुक्त लाएंगे। कहां होगा वो लोकायुक्त? सात साल बाद भी कहीं नजर नहीं आ रहा। हाईकोर्ट ने 27 जून 2023 को धामी सरकार को कहा कि लोकायुक्त आठ सप्ताह में घोषित करो, तो सरकार ने फौरन बैठक की। सीएम की अध्यक्षता में चयन समिति बनाई। नेता प्रतिपक्ष को भी इसका सदस्य बनाया। एक बैठक हुई, इसमें तय किया गया कि अगली बैठक में चयन होगा। अगली बैठक में तय हुआ कि एक और बैठक बुलाई जाएं। फिर एक बैठक हुई इसमें कहा गया कि नेता प्रतिपक्ष आए ही नहीं। फिर एक और बैठक हुई। नेता प्रतिपक्ष फिर नहीं आए।
बैठक-बैठक में साल दर साल निकल रहे हैं। हाईकोर्ट ने 4 नवंबर तक लोकायुक्त नियुक्त करने की समय सीमा बढ़ाई, लेकिन अब भी लोकायुक्त नहीं नियुक्त हुआ। लोकायुक्त संबंधी जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने मांगी। सारे दस्तावेज मेरे पास हैं कि किस तरह से लोकायुक्त की बैठकों में कोई निर्णय नहीं हो सका। चयन समिति की उपलब्धि यही है कि इसमें पूर्व जस्टिस एमएम घिल्डियाल को इसका सदस्य बना दिया गया है।
लोकायुक्त को लेकर अब आचार संहिता का बहाना होगा। इस बीच बैक डोर भर्ती के मामले में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, आय से अधिक संपत्ति के मामले में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी और मेयर सुनील उनियाल गामा जैसे दिग्गज नेता आरोपों के घेरे में हैं। पर इनकी जांच करेगा कौन? वहीं, लोकायुक्त में तैनात 24 कर्मचारी कई वर्षों से मौज काट रहे हैं। चवन्नी का काम नहीं है और लाखों का वेतन डकार रहे हैं।
उपरोक्त के अलावा नगर निगम में स्वच्छता समिति का करोड़ों का घोटाला हुआ है। प्रदेश में 2200 करोड़ का खनन घोटाला, यूपीसीएल के एमडी अनिल यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप, सैन्य धाम निर्माण में अनियमितता, यूकेएसएससी घोटाला जैसे बढ़े घोटाले हो चुके हैं। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। न जांच हो रही है।
इसके बावजूद धामी सरकार गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रही है कि भ्रष्टाचार पर प्रहार हो रहा है। कई लोग जेल में बंद हैं। हाकिम जैसों को तो बंद कर दिया गया, लेकिन हाकिम का हाकम कौन? पता नहीं। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य जिस तरह से लोकायुक्त की बैठकों से नदारद चल रहे हैं, उससे तो लगता है कि अंदरखाने में भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे से मिले हुए हैं। जनता की परवाह कौन करें?
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)