धीरे-धीरे मर रहा है जोशीमठ, मर जाएगा पहाड

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  • विकास के नाम पर पहाड़ खोदने और जलविद्युत परियोजनाएं ला रही विनाश
  • गुजरातियों के लिए पहाड़ बेच रहे हैं प्रदेश के नेता और अफसर

सीएम पुष्कर सिंह धामी का पूरा जोर है कि रुकी हुई जलविद्यतु परियोजनाओं को हरी झंडी मिल जाएं। यह भी कोशिशर हो रही है कि खनन कार्य को न एनजीटी रोके और न ही प्रदूषण विभाग। वनों के अंधाधुंध कटाव को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रोक-टोक न हो। आपदा के घर पहाड़ में शीशे के महल खड़े किये जा रहे हैं। रोपवे बन रहे हैं और पहाड़ों में सुरंग खोदी जा रही हैं। अब जरा इस बात को समझिए। बदरीनाथ में गुजरातियों की दुकानें होंगी। ठेका भी उनके पास है। केदारनाथ में रोपवे का ठेका गुजरातियों का है। चारधाम का भी ठेका। लेजर शो का ठेका भी गुजरातियों के पास है। बदरीनाथ में रिवर फ्रंट बनाने की तैयारी है। क्यों? क्योंकि अधिकांश ठेके गुजरातियों के हैं। जानमाल का नुकसान होगा तो पहाड़ी मरेंगे, गुजराती नहीं।
तीन-चार दिन पहले बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय से मिला। अजेंद्र ने गर्व से बताया कि केदारनाथ में रोपवे का ठेका गुजरात की किसी कंपनी को दे दिया है। मैंने सवाल दागा कि गुजरातियों को ही क्यों? उत्तर मिला, बेहतर तकनीक और सुविधाओं के कारण। उत्तराखंड में यही हो रहा है। ठेके गुजरातियों और दूसरों को मिल रहे है और हम पहाड़ी उनकी इच्छा के गुलाम हैं कि वह हमें रोजगार दें या न दें। उनकी मर्जी। प्रदेश में 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार की बात बेमानी है। आपदा के घर पहाड़ में यह कथित विकास किसके लिए हो रहा है, समझ से परे है? क्या गुजरातियों के लिए? पहाड़ियों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। पहाड़ बंजर और खाली हो रहे हैं। लैंटीना और कटोरी के कांटों से पहाड़ की पगडंडियां और जंगल हरे से लाल होते जा रहे हैं।
जोशीमठ अब तेजी से दरकने लगा है। छावनी बाजार से लेकर चांई गांव तक दरारें हैं। सरकार और प्रशासन पिछले 50 साल से आंखें मूंदे हुए थे। अब उनकी आंखें खुल रही हैं। डीएम हिमांशु खुराना दो दिन पहले वहां पहुंचे। सचिवालय में भी कुछ हलचल है। पिछले साल 2021 में दो भूवैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल और डॉ. एसपी सती ने निजी तौर पर क्षेत्र का भूगर्भीय सर्वेक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी। जोशीमठ नगर में धंसाव 1970 के दशक में भी महसूस किया गया था। तब सरकारी स्तर पर गढ़वाल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में धंसाव के कारणों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने 1978 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि जोशीमठ नगर के साथ पूरी नीती और माणा घाटियां मोरेन पर बसी हुई हैं। ऐसे में इन घाटियों में बड़े निर्माण कार्य नहीं किये जाने चाहिए। वे कहते हैं कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया और इन घाटियों में दर्जनों जल विद्युत परियोजनाओं के साथ ही कई दूसरे निर्माण भी लगातार हो रहे हैं।
जोशीमठ की स्थायी आबादी करीब 20 हजार है और हर समय करीब इतने ही सैनिक भी यहां तैनात रहते हैं। इस तरह देखा जाए तो जोशीमठ में कुछ 35 से 40 हजार सिविलियन और सैनिक रहते हैं। हर रोज यहां ठहरने और यहां से गुजरने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या भी हजारों में होती है। छावनी बाजार क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित है। यह जोशीमठ की पुरानी बसावटों में से एक है। छावनी बाजार क्षेत्र में एक भी घर ऐसा नहीं, जिसमें पिछले एक वर्ष के दौरान दरार न आई हो। ये दरारें लगातार चौड़ी होती जा रही हैं। सड़कों पर कई गहरे गड्ढे भी नजर आ रहे हैं। सेना लगातर इन गड्ढों को भरती है, लेकिन गड्ढे फिर से बन जाते हैं। यही आलम जोशीमठ ब्लॉक का है। यहां लगभग 50 गांव हैं और वर्ष 2013 में तैयार की गई सूची के अनुसार इस ब्लॉक के 17 गांव रहने लायक नहीं थे और उन्हें दूसरी सुरक्षित जगहों पर बसाये जाने की जरूरत बताई गई थी।
रुड़की स्थित केंद्रीय भवन शोध संस्थान(सीबीआरआई), आईआईटी रुड़की और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने इस साल अगस्त में एक सर्वे किया। वैज्ञानिकों ने यह रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। वैज्ञानिकों ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट में सुझाव दिये हैं कि जोशीमठ के निचले ढलानों पर स्थित लोगों को विस्थापित किया जाए और यहां चल रहे निर्माण कार्यों पर रोक लगाई जाए।
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि नाले के आसपास हो रहे सभी निर्माण कार्यों पर अविलंब रोक लगाई जाए। यदि संभव हो तो वहां रह रहे लोगों को किसी अन्य स्थान पर विस्थापित किया जाए। उनके अनुसार ड्रेनेज सिस्टम को और बेहतर बनाने की जरूरत है। यहां बढ़ रही आबादी भी खतरे को न्योता दे रही है। जोशीमठ के आसपास के ढलानों की नियमित मॉनीटरिंग की जानी चाहिए। यहां संसाधन विकसित करने और अन्य विकास कार्य यहां बहुत ही जोखिमपूर्ण हैं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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