- क्या दून में स्मारक के लिए सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी देंगे भूमि दान?
- सब्या धाणि दूण, है कोई दानी दाता नेता जो कर दे स्मारक के लिए भूमि दान
उत्तराखंड के अधिकांश नेताओं का इतिहास उठाकर देख लो। पूरी तरह से कंगाल थे और भुखमरी के कगार पर थे। चंदाखोरी कर गुजारा कर रहे थे, लेकिन राज्य बनते ही उनकी पौबारह हो गयी। पिछले 22 वर्षों में ही देखते ही देखते चंदाखोर नेताओं के महल खड़े हो गये। रातों-रात अमीर हो गये। करोड़ों के व्यारे-न्यारे हो गये। दून, हरिद्वार और हल्द्वानी समेत नगरों और गांवों की जमीन को बेच खाया। अकेले देहरादून में 540 हेक्टेयर सरकारी जमीन को खुर्द-बुर्द कर दिया गया। अनुमान के मुताबिक पिछले 22 साल में देहरादून में 20 हजार करोड़ की सरकारी भूमि खुर्द-बुर्द कर दी गयी। आज भी प्रत्येक दिन देहरादून में लगभग ढाई करोड़ की सरकारी भूमि पर नेताओं और अफसरों की मिली-भगत से अतिक्रमण हो रहा है।
मसूरी विधानसभा क्षेत्र, कैंट और रायपुर इलाके में सबसे अधिक अतिक्रमण हुआ है। यदि यहां से पूर्व विधायकों, विधायकों, पूर्व पार्षदों, पार्षदों की नैतिक-अनैतिक प्रापर्टी की जांच हो तो पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। इन विधानसभा क्षेत्र के नेताओं ने आधा देहरादून बेच डाला।
नेताओं के मॉडस आपरेंडी यानी अपराधीकरण की एक बहुत ही अच्छी चाल है। ये लोग पहले कहीं जमीन को सौदा करते हैं। फिर उसके आसपास कोई सरकारी बड़ा प्रोजेक्ट बना देते हैं। इनकी खरीदी जमीन का भाव रातों-रात चार गुणा हो जाता है। ऊपर से प्रोजेक्ट के कुछ हिस्से पर अतिक्रमण भी करवा देते हैं। ऐसे में दोहरा लाभ होता है। यानी आम के आम, गुठलियों के भी दाम।
अब सीडीएस जनरल बिपिन रावत का स्मारक दून में बनाने की बात हो रही है। मुझे गर्व है कि सीडीएस जनरल रावत हमारे उत्तराखंड से हैं और हर उत्तराखंडी को उन पर गर्व होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। वह हमारे लिए हमेशा प्रेरणोस्रोत बने रहेंगे। लेकिन उनका स्मारक दून में क्यों बने? उनके पैतृक गांव सैंण में क्यों नहीं बने? पहाड़ का एक गांव आबाद होगा। उसके आसपास के कुछ अन्य गांव भी आबाद होंगे। पलायन से कुछ राहत मिलेगी। सैंण में गतिविधियां बढ़ेंगी। पर्यटन और रोजगार बढ़ेगा।
दून में तो स्मारक से अधिक संभावनाएं तलाशी जाएंगी या जा सकेंगी। यदि प्रदेश के नेताओं को देशभक्ति की इतनी चिन्ता है तो सैनिक कल्याण मंत्री समेत कोई भी नेता अपनी जमीन का एक हिस्सा दून में स्मारक के लिए दान दे दें तो हम मान लेंगे कि उन्हें देशभक्ति और देशभक्तों की परवाह है। वैसे भी जब सैन्य धाम देहरादून में है तो सीडीएस जनरल रावत का स्मारक दून में बनाने का कोई औचित्य नहीं है। मेरी सलाह है कि स्मारक सैंण में बनाया जाएं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]