गजब के चारुदा, जज्बे को सलाम

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कल देहरादून के पलटन बाजार में उत्तराखंड बंद कराने में जुटे मुट्ठी भर लोग कोतवाली चौक पर पहुंचे। गांधी पार्क से यहां तक आते-आते युवा नेता हिमांशु, बाबी पंवार, लुसुन, मोहित डिमरी और अन्य ढपली बजाते और नारे लगाते थक गये। ऐसे में काली-सफेद खिचड़ी दाढ़ी और अधपके बालों वाला एक अधेड़ आगे बढ़ता है और बुलंद आवाज में अंकिता को न्याय देने समेत कई नारे लगाता है। बेहिचक और बेझिझक। दिल में आग लिए और मुट्ठी भींचे हुए नारे लगाते इस व्यक्ति को देख मुझे अक्सर ईर्ष्या होती है कि मैं ऐसा क्यों नहीं हूं? जी हां, ये कोई और नहीं वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी यानी चारु दा थे। दिल्ली से विशेष तौर पर अंकिता मामले को लेकर आयोजित बंद में शरीक होने आए थे। कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि ये आदमी थकता क्यों नहीं? घस्यारी का मुद्दा हो तो यह दिल्ली से चमोली पहुंच जाता है। राजधानी का मुद्दा हो तो गैरसैंण और जगदीश हत्याकांड हो तो अल्मोड़ा। चारुदा को आप उत्तराखंड के हर हिस्से में देख सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार चारू तिवारी को उम्र या दाढ़ी सफेद होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं उन्हें दिल्ली में स्टूडेंट लाइफ से ही देख रहा हूं। वक्त बदलता गया लेकिन चारुदा नहीं बदले। वही अंदाज, जनपक्षधरता, बेबाकी और सम-सामायिक घटनाओं पर बेबाक राय। एक पत्रकार के तौर पर उनकी कलम में जादुई ताकत और शब्दों पर जबरदस्त पकड़ है तो एक सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोलने की अद्भुत क्षमता। कल दिन भर उत्तराखंड बंद कराने में जुटे चारु दा शाम को कचहरी स्थित शहीद स्मारक में पत्रकारों के द्वारा उत्तराखंड के शहीदों और अंकिता को दी गयी श्रद्धांजलि सभा में भी पहुंचे।
वरिष्ठ पत्रकार चारु दा मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं और मैं उनसे बहुत कुछ सीखता हूं। मुझे चारुदा पर गर्व है। पहाड़ के प्रति उनके समर्पण, निष्ठा और ईमानदारी को सैल्यूट।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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