- सरकार और पर्यावरण पुरस्कार विजेताओं की चुप्पी खलती है
- मैं बुरा हूं, क्योंकि सवाल करता हूं, जो चुप हैं वो पदमश्री हैं
पहाड़ में जंगल धधक रहे हैं। एक हजार हेक्टेयर से भी अधिक जंगल स्वाहा हो गये। गुजरात और दिल्ली के ठेकेदार अदनी सी चौड़ी सड़क के लिए हजारों पेड़ काट रहे हैं। चुप हैं अधिकांश पर्यावरणविद। किसी को पदम पुरस्कार मिल गया और किसी को मिलना है। सत्ता और पुरस्कार विजेताओं की सांठगांठ तब खलती है, जब सब हिमालय को लेकर सब चुप हो जाते हैं। आज हमारी सांसों पर संकट है। पर हम सब मौन हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यदि आम दिनों में पदम विभूषण अनिल जोशी के गांव शुक्लापुर जाते तो स्वागत था। लेकिन जब जंगल धधक रहे हों, और जोशी की आवाज किसी गुफा में बंद है, तो ऐसे में सीएम का शुक्लापुर जाना बहुत खलता है। बेहतर होता, सीएम धामी किसी भी पर्वतीय जिले में जाकर वनों की आग को लेकर विभाग की समीक्षा करते, ग्रामीणों को जागरूक करते।
मैं पहले नहीं मानता था लेकिन अब कुछ कुछ लगने लगा है कि पदम पुरस्कार भी मैनेज होते हैं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]