- यूकेडी नेता दिवाकर भट्ट ने कहा, बहिष्कार हो
- मेरा निवेदन, पक्ष रखने और सवाल करने का मौका दो, प्लीज!
कल मैंने एक पोस्ट लिखी कि यूकेडी नेता दिवाकर भट्ट नहीं जीतने चाहिए। यदि जीतेंगे तो यूकेडी को नुकसान होगा क्योंकि वह सत्ताधारी दल के साथ चले जाएंगे। इससे पहले मैंने योगी, मोदी, सतपाल महाराज, मदन कौशिक, हरीश रावत, कर्नल अजय कोठियाल के बारे में भी कयासों के आधार पर पोस्ट लिखीं। इन सबके हारने या कमजोरियों का जिक्र किया। एक पत्रकार होने या एक आम आदमी होने के नाते मुझे संविधान ने इसकी अनुमति दी है, बशर्ते किसी की मानहानि न हो।
यूकेडी नेता दिवाकर भट्ट ने अपनी वाल पर मेरा बहिष्कार करने की बात लिखी। मैं उनसे अगले कुछ दिनों तक 50 सवाल करूंगा। यदि सवालों के ईमानदार जवाब मिल गये तो, हालांकि मैंने कोई गलती नहीं की है, इसके बावजूद मैं उनसे सार्वजनिक तौर पर माफी मांग लूंगा। सवाल की शुरुआत आज से ही कर रहा हूं। मुझे सवालों के माध्यम से अपना पक्ष रखने की अनुमति तो मिलनी ही चाहिए। आज कुछ बुनियादी सवाल और कल से राजनीतिक सवाल। उम्मीद है कि मुझे मेरे सवालों के जवाब मिलेंगे।
– पहला सवाल, भट्ट जी, क्या मेरे कहने भर से आप चुनाव हार या जीत सकते हो, जो आपने उस पोस्ट को दिल से लगा लिया। यदि ऐसा है तो कई न्यूज चैनलों पर डिबेट में अखिलेश-योगी, हरीश रावत, चन्नी, कैप्टन अमरेंदर आदि के हार-जीत के दावे किये जा रहे हैं। कई न्यूज चैनल तो ज्योतिषों की भविष्यवाणी भी करवा रहे हैं। तो क्या उन सभी का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए?
– सामाजिक बहिष्कार की परिभाषा क्या है? क्या यह संविधान प्रदत्त व्यवस्था है?
– क्या उत्तराखंड में भी खाप व्यवस्था है। या पंचायत अधिनियम में सामाजिक बहिष्कार का उल्लेख है? इसके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार प्रतिबंधक कानून-2015 बना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सामाजिक बहिष्कार को नकार दिया है तो क्या आप मेरा बहिष्कार गैर-कानूनी ढंग से करेंगे?
– मैं तो दिन भर कई जगह भटकता हूं। महीने में प्रदेश के कई इलाकों में जाता हूं तो मेरा बहिष्कार किस तरह से संभव होगा?
– यूकेडी 40 साल पुरानी पार्टी है। इसके सिरमौर आप हैं। जरा बताएंगे कि यदि मैं नौ पर्वतीय जिलों में जाऊं और यूकेडी वाले मेरा बहिष्कार करें तो कहां-कहां मेरा बहिष्कार हो सकता है।
– क्या राज्य के लिए संघर्ष और त्याग सिर्फ आपने किया है? भला आपका त्याग मेरे त्याग से बड़ा कैसे? आपके लिए त्याग की क्या परिभाषा है? 1994 के राज्य आंदोलन में हजारों लोगों ने भाग लिया। इनमें से कई छात्र है जिनको न तो नौकरी मिली और न ही चिन्हित आंदोलनकारी ही बने। संघर्ष और त्याग के सबके लिए अलग पैमाने हैं। क्या उनका त्याग और संघर्ष आपसे कम है? आपको त्याग और संघर्ष का सिला मिला। विधायक बने, मंत्री बने, यूकेडी अध्यक्ष बने, लेकिन अन्य को क्या मिला? कभी सोचा, उनके बारे में जो आंदोलनकारी आज भी ठेले पर चाय बेच रहे हैं।
– क्या राज्य के लिए आंदोलन केवल ऐरी, भट्ट, पंवार, त्रिपाठी ने ही किया। उन हजारों अज्ञात आंदोलनकारियों का क्या, जो बिना सोचे-समझे, घर-बार छोड़कर सड़कों पर आ गये थे? उनको भी तो सत्ता चाहिए या बेहतर सरकार चाहिए। जो नहीं मिली तो इसकी नैतिक जिम्मेदारी किसकी है?
– सच्चा त्याग और बलिदान उन लोगों ने किये जिन्होंने राज्य आंदोलन में अपने बेटे, बेटी या मां-पिता खो दिये। उनके सामने आपका और मेरा त्याग व संघर्ष बहुत बौना है। तो फिर त्याग, संघर्ष और बलिदान को आप ही क्यों कैश कराते हो?
– राज्य मिला, निश्चत तौर पर इसमें यूकेडी की अहम भूमिका रही। लेकिन राज्य मिलने के बाद राज्य आंदोलन पाठ्यक्रम में क्यों नहीं शामिल हुआ? जिस बच्चे ने 2000 में जन्म लिया, क्या उसे पता है कि आप कौन हो? या हंसा धनाई कौन थी, यशोधर बेंजवाल, या राजेश रावत। इस अज्ञान के लिए दोषी कौन है?
– आपको कुछ यूकेडी वाले फील्ड मार्शल कहते हैं। गोरखालैंड के सुभाष घीसिंग हवलदार थे, जबकि गणेश जोशी सिपाही। इसके बावजूद दोनों ही चुनाव नहीं हारते। आप तो फील्ड मार्शल हो तो अपने ही गांव में चुनाव क्यों हार जाते हो?
कभी समीक्षा या मंथन किया?
सवालों का क्रम जारी रहेगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]