देहरादून, 21 मई। प्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा का आज निधन हो गया। 94 वर्षीय बहुगुणा कोरोना संक्रमित थे। उन्होंने ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में शुक्रवार दोपहर करीब 12 बजे अंतिम सांस ली। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुगुणा के निधन पर शोक जताया और इसे देश के लिए ‘‘बहुत बड़ा नुकसान’’ बताया। उत्तराखंड भाजपा ने अपने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धाजंलि दी।
सुंदरलाल बहुगुणा को कोरोना संक्रमण होने के बाद 8 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की टीम ने बृहस्पतिवार को इलेक्ट्रोलाइट्स और लीवर फंक्शन टेस्ट समेत ब्लड शुगर की जांच और निगरानी की सलाह दी थी। बहुगुणा के अंतिम सांस लेने से कुछ देर पहले ही महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फोन पर उनकी तबीयत की जानकारी ली थी। बताया जा रहा है कि डायबिटीज के साथ वह कोविड निमोनिया से पीडि़त थे।
इस बीच, प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा, ‘‘सुंदरलाल बहुगुणाजी का निधन हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है। प्रकृति के साथ तालमेल कर रहने की हमारे सदियों पुराने लोकाचार का उन्होंने प्रकटीकरण किया। उनकी सदाशयता और जज्बे की भावना को कभी भूला नहीं जा सकता। मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ है।’’
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नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता कहा जाता है। हिमालय के रक्षक बहुगुणा गांधी के पक्के अनुयायी थे और उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य पर्यावरण की सुरक्षा था।
सुंदरलाल ने 13 वर्ष की उम्र में राजनीतिक करियर शुरू किया था। 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया था। जिसके बाद बहुगुणा ने गांव में रहने का फैसला किया और एक आश्रम खोला। उन्होंने बाद में टिहरी के आसपास के क्षेत्रों में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
गौरा देवी और कई अन्य लोगों के साथ बहुगुणा ने सत्तर के दशक में जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। 1970 में शुरू हुआ ये आंदोलन तेजी से पूरे भारत में फैलने लगा। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने से बचाने के लिए उनका ये आंदोलन पूर्णता शांतिपूर्ण होता था। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिले की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए।
पेडो को बचाने के लिए बहुगुणा ने 1980 की शुरुआत में हिमालय की 5 हजार किलोमीटर लंबी यात्रा की थी। यात्रा के दौरान गांवों का दौरा करते हुए उन्होंने लोगों को पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दिया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट कर 15 साल तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। जिसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई थी।
टिहरी बांध के निर्माण के खिलाफ बहुगुणा ने बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था। इस दौरान उन्होंने विरोधस्वरूप अपना मुंडन भी करवाया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा था। टिहरी बांध के जलाशय में उनका खुद का घर भी डूब गया था। बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई बार पदयात्राएं कीं। वह हिमालय में होटलों के बनने और लग्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे। टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कड़ा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।